
उत्तर प्रदेश के बरेली में उत्तराखंड पुलिस की “सर्जिकल स्ट्राइक” अब बड़ा विवाद बनती जा रही है। 9 मार्च को उत्तराखंड पुलिस ने बरेली के अगरासपुर गांव में करीब 300 पुलिसकर्मियों के साथ एक छापेमारी अभियान चलाया, जिसका मकसद कथित रूप से नशा तस्करों के खिलाफ कार्रवाई करना था। लेकिन यह पूरी कार्रवाई बिना किसी पूर्व सूचना के की गई, जिससे बरेली के एसएसपी भड़क गए और उन्होंने जांच कमेटी बना दी। अब यह मामला दोनों राज्यों की पुलिस के बीच टकराव का कारण बन चुका है।
मुख्य विवाद के बिंदु
1. बिना इजाजत बरेली में छापेमारी?
उधम सिंह नगर के एसएसपी मणिकांत मिश्रा के नेतृत्व में उत्तराखंड पुलिस ने यह ऑपरेशन किया, जिसमें कई वरिष्ठ अधिकारी, सब-इंस्पेक्टर और सिपाही शामिल थे। लेकिन बरेली पुलिस को इस रेड की कोई जानकारी नहीं दी गई थी।
2. बरेली एसएसपी की कड़ी प्रतिक्रिया
बरेली के एसएसपी ने उत्तराखंड पुलिस की इस कार्रवाई पर कड़ी नाराजगी जाहिर की और कहा कि अगर नशा तस्करों के खिलाफ कोई अभियान चलाना था, तो पहले जानकारी देना जरूरी था। बिना सूचना के बरेली की सीमा में इतनी बड़ी पुलिस फोर्स का आना नियमों के खिलाफ है।
3. ग्रामीणों की शिकायतें – उत्तराखंड पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की मांग
अगरासपुर गांव के कई ग्रामीणों ने उत्तराखंड पुलिस के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। ग्रामीणों का आरोप है कि छापेमारी के दौरान पुलिस ने बदसलूकी की और दहशत का माहौल बनाया। ग्रामीणों की इन शिकायतों के आधार पर बरेली पुलिस को उत्तराखंड पुलिस के खिलाफ कार्रवाई करने का मौका मिल गया।
4. दोनों एसएसपी आमने-सामने
बरेली के एसएसपी द्वारा सवाल उठाए जाने पर उधम सिंह नगर के एसएसपी मणिकांत मिश्रा नाराज हो गए। अब दोनों राज्यों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं, जिससे यह मामला और उलझता जा रहा है।
कानूनी और प्रशासनिक पहलू
यह विवाद अंतरराज्यीय पुलिस समन्वय की कमी को उजागर करता है। कानून के अनुसार, किसी भी राज्य की पुलिस को दूसरे राज्य में छापेमारी से पहले संबंधित जिले की पुलिस को सूचना देनी होती है। लेकिन उत्तराखंड पुलिस ने इस नियम का पालन नहीं किया, जिससे अब कानूनी कार्रवाई की संभावना बढ़ गई है।
अब बरेली एसएसपी ने तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की एक जांच टीम गठित की है, जो पूरे मामले की जांच करेगी और रिपोर्ट पेश करेगी।
अब आगे क्या?
यह मामला दो राज्यों की सरकारों के हस्तक्षेप तक पहुंच सकता है। अगर जांच में उत्तराखंड पुलिस की गलती साबित होती है, तो उनके खिलाफ आधिकारिक कार्रवाई भी हो सकती है।
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