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कुतुबखाना घंटाघर: बरेली की ऐतिहासिक धरोहर जिसका समय रुक गया

बरेली के प्रसिद्ध कुतुबखाना घंटाघर का इतिहास, वर्तमान हालात और संरक्षण की आवश्यकता पर विस्तृत लेख। जानें क्यों अटक गईं इसकी सुइयाँ और कैसे यह ऐतिहासिक धरोहर शहर की पहचान बनी।

लेखक: अजय सक्सेना, बरेली
(यह लेख बरेली की ऐतिहासिक विरासत को संजोने की एक पहल है।)

समय कभी नहीं रुकता, लेकिन बरेली का घंटाघर क्यों अटक गया?

“मैं समय हूँ… न किसी के रोकने से रुका हूँ, न रुकूंगा।”
लेकिन बरेली शहर के कुतुबखाना चौराहे पर स्थित ऐतिहासिक घंटाघर की सुइयाँ कई बार अटक चुकी हैं। न सिर्फ अटकी हैं, बल्कि इसकी चारों घड़ियाँ अलग-अलग समय दिखाकर शहरवासियों को भ्रमित कर रही हैं। क्या यह सिर्फ एक तकनीकी खराबी है, या फिर हम अपनी ऐतिहासिक विरासत की अनदेखी कर रहे हैं?

कुतुबखाना घंटाघर का गौरवशाली इतिहास

1. ब्रिटिशकालीन टाउन हॉल और पुस्तकालय (1868)

  • 1868 में आर्य समाज गली के सामने टाउन हॉल बनाया गया, जिसमें एक विशाल पुस्तकालय (कुतुबखाना) था।
  • यह स्थान प्रशासनिक बैठकों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और बुद्धिजीवियों की मंच था।
  • 1968 में बिजली गिरने से इमारत पूरी तरह ध्वस्त हो गई।

2. घंटाघर का निर्माण (1975) और पुनर्जन्म (2022)

  • 1975 में टाउन हॉल के स्थान पर घंटाघर बनाया गया, जिसमें 1977 में घड़ी लगाई गई।
  • 2022 में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत 87 लाख रुपये खर्च कर चारों दिशाओं में 9-9 फीट की आधुनिक घड़ियाँ लगाई गईं, जिनकी आवाज़ 1 किमी दूर तक सुनाई देती थी।

आखिर क्यों अटक गईं घंटाघर की सुइयाँ?

  1. तकनीकी खराबी और मेंटेनेंस की कमी
  • घड़ियों का रखरखाव न होने से वे खराब हो गईं।
  • चेन्नई की कंपनी इंडियन क्लॉक्स को ठेका दिया गया, लेकिन नियमित देखभाल नहीं हुई।
  1. प्रशासनिक उदासीनता
  • नगर निगम द्वारा घंटाघर की देखभाल पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
  • मुख्तार अहमद डम्पी जैसे समर्पित कर्मचारी के बावजूद, संसाधनों की कमी बाधा बनी हुई है।
  1. ऐतिहासिक धरोहर की अनदेखी
  • बरेली की पहचान रहे इस स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं किया गया।

क्या हो सकता है समाधान?

नियमित रखरखाव: नगर निगम को घड़ियों की मरम्मत के लिए विशेषज्ञ नियुक्त करने चाहिए।
पर्यटन विकास: घंटाघर के आसपास ऐतिहासिक जानकारी वाले बोर्ड लगाए जाएँ।
जनजागरूकता: स्थानीय लोगों को इसके महत्व के बारे में शिक्षित किया जाए।

निष्कर्ष: समय बदले, लेकिन विरासत न बदले

कुतुबखाना घंटाघर सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि बरेली की सांस्कृतिक धड़कन है। अगर हमने अभी इसकी देखभाल नहीं की, तो आने वाली पीढ़ियों को यह केवल टूटी घड़ियों और उपेक्षित इमारत के रूप में याद रहेगा। आइए, हम सब मिलकर इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाएँ!


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