
उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में टैक्स चोरी से जुड़ा एक बड़ा घोटाला सामने आया है। जीएसटी विभाग की गोपनीय जांच में सामने आया है कि बोगस फर्मों के माध्यम से कागज़ों में करोड़ों रुपये की फर्जी खरीद-बिक्री दर्शाकर इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का गलत इस्तेमाल किया गया।
यह घोटाला ना केवल सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाने वाला है, बल्कि यह दिखाता है कि किस तरह कुछ लोग सिस्टम का दुरुपयोग कर रहे हैं।
फर्जी फर्मों के जरिए कैसे हुआ घोटाला?
जांच में पता चला कि कई ऐसी फर्में बनाई गईं जो सिर्फ कागज़ों पर मौजूद थीं। इन फर्मों ने बिना कोई वास्तविक माल खरीदे या बेचे, करोड़ों रुपये की सप्लाई दिखाकर ITC अर्जित किया और फिर इसे अन्य राज्यों में पंजीकृत फर्मों को ट्रांसफर कर दिया।
उदाहरण के लिए:
- फरवरी 2025 में ₹10.84 करोड़ की फर्जी सप्लाई दिखाकर ₹2.42 करोड़ की ITC महाराष्ट्र में ट्रांसफर की गई।
- एमके इंटरप्राइजेज नामक फर्म ने ₹47.41 करोड़ की अंतरराज्यीय सप्लाई दर्शाई और ₹9.44 करोड़ की IGST देयता को फर्जी ITC से समायोजित कर लिया।
हरियाणा की दो फर्मों को हुआ अनुचित लाभ
बरेली में पंजीकृत इन फर्जी फर्मों से हरियाणा की दो फर्मों – संतोष सर्विसेज और विष्णु सर्विसेज को फायदा पहुंचाया गया। इससे लगभग ₹4.54 करोड़ के राजस्व की हानि हुई।
शर्मा इंटरप्राइजेज: फर्नीचर कारीगर के नाम पर बनी फर्जी फर्म
बरगांव की एक फर्म, शर्मा इंटरप्राइजेज, के नाम से 94 लाख से ज्यादा की सप्लाई दिल्ली को दिखाई गई। लेकिन जब जांच हुई तो पता चला कि फर्म जिस व्यक्ति के दस्तावेजों पर पंजीकृत थी, वह एक साधारण फर्नीचर कारीगर हैं जिन्हें पंजीकरण की जानकारी तक नहीं थी।
सरकारी कार्रवाई और निष्कर्ष
राज्य कर विभाग के अपर आयुक्त ग्रेड-1 दिनेश कुमार मिश्र के अनुसार, इस पूरे घोटाले में अब तक तीन फर्मों का पंजीकरण निरस्त किया गया है और हरियाणा की दो फर्मों को निलंबित किया गया है। अब तक 1.53 करोड़ रुपये की कर चोरी रोकी जा चुकी है।
निष्कर्ष
यह मामला हमें बताता है कि बोगस फर्मों के जरिए जीएसटी सिस्टम का दुरुपयोग किस हद तक किया जा सकता है। लेकिन राहत की बात यह है कि जीएसटी विभाग की निगरानी और जांच प्रणाली सक्रिय है और ऐसे मामलों पर कठोर कार्रवाई की जा रही है।
सरकार और करदाता दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि वे फर्जीवाड़े के खिलाफ सतर्क रहें और पारदर्शी टैक्स व्यवस्था को मजबूत करें।