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BRICS में डॉलर पर फूट: भारत की स्पष्ट रणनीति

BRICS देशों में अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने की बहस लंबे समय से चल रही है, लेकिन अब यह संगठन इस मुद्दे पर विभाजित नजर आ रहा है। चीन, रूस और ब्राजील जहां डॉलर की जगह वैकल्पिक मुद्रा प्रणाली अपनाने की वकालत कर रहे हैं, वहीं भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि उसे इस मुहिम में कोई दिलचस्पी नहीं है।

डॉलर के विकल्प की तलाश

2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से ही चीन ने युआन को डॉलर के विकल्प के रूप में आगे बढ़ाने की कोशिश शुरू कर दी थी। उसने कई देशों के साथ मुद्रा विनिमय समझौतों पर दस्तखत किए और ब्रिक्स मंच पर भी इसे आगे बढ़ाने का प्रयास किया। रूस, जो यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है, वह भी डॉलर से अलग एक नई वित्तीय प्रणाली की मांग कर रहा है। वहीं, ब्राजील के राष्ट्रपति लुला डि सिल्वा भी लंबे समय से अमेरिकी मुद्रा पर निर्भरता कम करने की वकालत कर रहे हैं।

भारत की स्पष्ट नीति

हालांकि, भारत ने इस मुद्दे पर तटस्थ रुख अपनाया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने लंदन स्थित थिंक टैंक चैथम हाउस में कहा कि अमेरिकी डॉलर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता का स्रोत है और भारत इसे कमजोर करने की किसी भी कोशिश में शामिल नहीं होगा। भारत का यह रुख ऐसे समय आया है जब BRICS देशों के भीतर इस मुद्दे पर एकमत नहीं बन पा रहा है।

ट्रंप की टैरिफ वॉर और भारत-अमेरिका संबंध

डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद वैश्विक व्यापार युद्ध (Trade War) तेज हो गया है। उन्होंने चीन पर भारी-भरकम टैरिफ लगा दिए हैं और BRICS देशों को भी चेतावनी दी है कि अगर उन्होंने डॉलर को कमजोर करने की कोशिश की, तो कड़े कदम उठाए जाएंगे। ऐसे में भारत अपने व्यापारिक और राजनयिक हितों को साधते हुए अमेरिका के साथ रिश्तों को मजबूत करने पर ध्यान दे रहा है। जयशंकर ने भी नई दिल्ली और वॉशिंगटन के बढ़ते व्यापारिक संबंधों की सराहना की और कहा कि भारत इस समय किसी भी रिसिप्रोकल टैरिफ (पारस्परिक शुल्क) के चक्रव्यूह में नहीं फंसना चाहता।

BRICS में डॉलर पर दो फाड़

ब्रिक्स देशों के बीच इस मुद्दे पर स्पष्ट मतभेद सामने आ चुके हैं। पिछले साल रूस के कजान में हुई ब्रिक्स शिखर बैठक से ही इस पर चर्चा चल रही थी, लेकिन कोई ठोस निर्णय नहीं हो सका। इस साल जनवरी में ट्रंप के सत्ता में आने के बाद यह बहस और तीव्र हो गई, लेकिन BRICS में एकराय नहीं बन सकी। चीन, रूस और ब्राजील जहां अपनी-अपनी मुद्रा को डॉलर का विकल्प बनाने पर जोर दे रहे हैं, वहीं भारत और दक्षिण अफ्रीका इससे दूरी बनाए हुए हैं।

आगे क्या?

BRICS के भीतर यह मतभेद दिखाता है कि अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व इतनी आसानी से समाप्त नहीं होने वाला। भारत के लिए अमेरिका एक महत्वपूर्ण रणनीतिक और व्यापारिक साझेदार है, और वह किसी भी ऐसे कदम से बचना चाहता है जो इन संबंधों को नुकसान पहुंचाए। ऐसे में BRICS के भीतर भविष्य में भी इस मुद्दे पर असहमति बनी रह सकती है, और फिलहाल वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में डॉलर का वर्चस्व बरकरार रहने की संभावना अधिक है।