
लखनऊ, 9 जून 2025 – उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 15 जून को आयोजित होने जा रहे कांस्टेबल नियुक्ति पत्र वितरण समारोह पर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। कार्यक्रम के लिए अटल बिहारी वाजपेयी इंटरनेशनल एकाना स्टेडियम को चुना गया है और सूत्रों के अनुसार इसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी भी संभावित है।
जहां सरकार इसे बेरोजगारी के खिलाफ एक बड़ा संदेश बता रही है, वहीं विपक्ष और सामाजिक संगठनों ने इसे जनता के पैसों की फिजूलखर्ची करार दिया है।
भव्य आयोजन या राजनीतिक प्रचार?
उत्तर प्रदेश सरकार करीब 60,244 कांस्टेबलों को नियुक्ति पत्र देने के लिए यह आयोजन कर रही है। यह कार्यक्रम राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में और डीजीपी के निर्देश पर आयोजित किया जा रहा है।
सरकार का दावा है कि यह आयोजन युवाओं को प्रेरित करने और सरकारी पारदर्शिता दिखाने का प्रयास है, लेकिन इसके पीछे का खर्च चर्चा में आ गया है।
अमिताभ ठाकुर का आरोप – “12 करोड़ की बर्बादी”
आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने इस आयोजन को लेकर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। उनका कहना है कि इस भव्य आयोजन पर 12 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आ रहा है, जबकि पहले अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र स्पीड पोस्ट के जरिए मात्र 25 रुपये में भेजे जाते थे।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि सिर्फ मथुरा के 1,538 अभ्यर्थियों पर ही 32.5 लाख रुपये का खर्च आ चुका है।
अमिताभ ठाकुर का सुझाव:
- पूरे प्रदेश से अभ्यर्थियों को बुलाने की जगह प्रतीकात्मक चयन किया जाए।
- स्थानीय स्तर पर या डिजिटल माध्यम से नियुक्ति पत्र दिए जाएं।
- धन, समय और श्रम की बचत हो।
विपक्ष के सवाल – क्या यह चुनावी स्टंट है?
विपक्षी दलों का आरोप है कि भाजपा सरकार यह कार्यक्रम 2027 चुनावों को ध्यान में रखकर राजनीतिक लाभ लेने के लिए कर रही है।
उनका कहना है कि जिस कार्य को सरल और कम खर्चीले तरीके से निपटाया जा सकता है, उसे भव्य बनाकर सरकार जनता को गुमराह कर रही है।
सरकार की सफाई – “युवाओं के लिए प्रेरणा का मंच”
सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यह कार्यक्रम नियुक्ति की पारदर्शिता, युवाओं के उत्साह और राज्य सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाने के लिए जरूरी है।
मुख्य उद्देश्य है:
- युवाओं में भरोसा पैदा करना
- मेहनत का सम्मान करना
- एक सामूहिक प्रेरणादायक वातावरण बनाना
निष्कर्ष: रोजगार या प्रचार?
जहां एक ओर यह आयोजन यूपी सरकार की रोजगार नीतियों की सफलता को दिखाता है, वहीं दूसरी ओर इससे जुड़ा बजट और दिखावापन सवालों के घेरे में आ गया है।
क्या जनता इस आयोजन को युवा सशक्तिकरण मानेगी या राजनीतिक नौटंकी? इसका जवाब 15 जून को कार्यक्रम के बाद और जनता की प्रतिक्रिया से स्पष्ट होगा।