
भूमिका भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना, आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY), को 2018 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य गरीब और कमजोर वर्ग को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना था। लेकिन हाल ही में सामने आए आंकड़े बताते हैं कि 600 से अधिक निजी अस्पतालों ने इस योजना से खुद को अलग कर लिया है। इस लेख में हम समझेंगे कि अस्पतालों के इस कदम के पीछे क्या कारण हैं और सरकार को इस दिशा में क्या कदम उठाने चाहिए।
निजी अस्पताल क्यों पीछे हट रहे हैं?
1. भुगतान में देरी
निजी अस्पतालों का सबसे बड़ा मुद्दा क्लेम सेटलमेंट में देरी है। सरकार द्वारा समय पर फंड जारी न करने की वजह से अस्पतालों को भारी वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण के तौर पर, हरियाणा में निजी अस्पतालों का 400 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान लंबित है।
2. कम रिम्बर्समेंट दरें
अस्पतालों का कहना है कि योजना के तहत तय किए गए उपचार पैकेज की दरें बहुत कम हैं, जिससे उनकी लागत निकलना मुश्किल हो रहा है। इससे उनकी वित्तीय स्थिति कमजोर होती जा रही है।
3. प्रशासनिक जटिलताएं
योजना में कई तकनीकी और प्रशासनिक बाधाएं भी हैं। क्लेम प्रक्रिया लंबी और जटिल होने के कारण अस्पतालों को बार-बार परेशानी उठानी पड़ती है।
4. सरकारी अस्पतालों को प्राथमिकता
कुछ राज्यों में इलाज के कुछ पैकेज सिर्फ सरकारी अस्पतालों के लिए आरक्षित हैं। इससे निजी अस्पतालों को कम मरीज मिल रहे हैं, जिससे उनका योजना में बने रहना कठिन हो रहा है।
किन राज्यों में सबसे ज्यादा अस्पताल बाहर हुए?
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, सबसे ज्यादा गुजरात के 233 अस्पतालों ने योजना से बाहर होने का फैसला किया। इसके अलावा, केरल में 146 और महाराष्ट्र में 83 अस्पतालों ने भी इसे छोड़ दिया है।
सरकार का क्या कहना है?
हरियाणा में आयुष्मान भारत की संयुक्त सीईओ अंकिता अधिकारी के अनुसार, फंड जारी करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और एक सप्ताह के भीतर समस्या हल हो जाएगी। केंद्र सरकार ने भी कहा है कि वे भुगतान प्रक्रिया को तेज करने और पैकेज दरों की समीक्षा करने पर विचार कर रहे हैं।
आगे की चुनौतियां
हालांकि 36 करोड़ से अधिक लोगों को आयुष्मान कार्ड जारी किए गए हैं, लेकिन निजी अस्पतालों का बाहर होना योजना के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है। यदि सरकार ने जल्दी समाधान नहीं निकाला तो और भी अस्पताल इससे हट सकते हैं, जिससे गरीबों को मुफ्त इलाज मिलने में दिक्कत हो सकती है।
संभावित समाधान
- तेजी से भुगतान प्रक्रिया लागू करना – सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि अस्पतालों को 15-30 दिनों के भीतर भुगतान किया जाए।
- पैकेज दरों की समीक्षा – उपचार लागत को ध्यान में रखते हुए नए रेट निर्धारित किए जाने चाहिए।
- निजी अस्पतालों को प्रोत्साहन देना – यदि सरकार कुछ कर रियायतें या अन्य वित्तीय सहायता दे, तो निजी अस्पताल योजना में बने रह सकते हैं।
- डिजिटल समाधान अपनाना – पेमेंट और क्लेम प्रोसेस को AI और ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों से तेज और पारदर्शी बनाया जा सकता है।
निष्कर्ष
आयुष्मान भारत योजना निश्चित रूप से गरीबों के लिए एक क्रांतिकारी पहल है, लेकिन निजी अस्पतालों की बढ़ती दूरी चिंता का विषय है। अगर सरकार जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाती, तो इस योजना की प्रभावशीलता पर असर पड़ सकता है।
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