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बरेली नगर निगम के बाबुओं की अय्याशी: कुंवारा बताकर सरकारी टीचर से लिव-इन में रहने वाला बाबू बेनकाब

बरेली नगर निगम के बाबुओं के इश्क और घोटालों की कहानियां थमने का नाम नहीं ले रही हैं। पहले टैक्स विभाग के बाबू सुनील राजपूत पर गंभीर आरोप लगे थे, और अब एक और बाबू की दिलफेंक मोहब्बत चर्चा में है। नगर निगम का एक अधिकारी खुद को कुंवारा बताकर सरकारी स्कूल की टीचर को अपने जाल में फंसा चुका है। इस बाबू की हकीकत जब सामने आई, तो मामला पुलिस कार्रवाई तक पहुंच गया।


कैसे फंसा नगर निगम का बाबू, जानें पूरी कहानी

बरेली नगर निगम के इस बाबू की मुलाकात एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका से हुई थी। बाबू ने खुद को कुंवारा बताकर प्यार का नाटक शुरू किया। धीरे-धीरे दोनों के बीच बातचीत बढ़ी, और मामला ‘जानू-शोना’ तक पहुंच गया। इस दौरान, स्कूल टीचर ने अपने पति से तलाक भी ले लिया।

बाबू की असलियत खुली तो मच गया हंगामा

शुरुआत में तो सब कुछ रोमांटिक लग रहा था, लेकिन जब स्कूल टीचर को हकीकत पता चली, तो पूरा मामला उलट गया। बाबू न सिर्फ शादीशुदा था, बल्कि उसके दो बच्चे भी थे। अब सवाल ये था कि वह किस मुंह से अपनी सफाई देगा?


स्कूल टीचर के घरवालों ने उठाए कड़े कदम

स्कूल टीचर के पिता दरोगा हैं, और जब उन्हें इस पूरे मामले की खबर लगी, तो उन्होंने कानूनी कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी। नगर निगम के बाबू को न सिर्फ टीचर को धोखा देने, बल्कि झूठ बोलकर अवैध संबंध बनाने के आरोपों का सामना करना पड़ सकता है।

बाबू पर लग सकते हैं ये गंभीर आरोप:

  1. झांसा देकर प्रेम संबंध बनाने का आरोप
  2. एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला (यदि शिक्षिका आरक्षित वर्ग से है)
  3. दुष्कर्म या धोखाधड़ी का मामला
  4. नौकरी की आचार संहिता का उल्लंघन

नगर निगम के बेलगाम बाबुओं पर क्यों उठ रहे सवाल?

बरेली नगर निगम में घोटालों और अनुशासनहीनता की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। पहले टैक्स बाबू सुनील राजपूत पर नौकरी दिलाने के बहाने शोषण और अपहरण के आरोप लगे थे, और अब यह नया मामला सामने आया है।

क्या बरेली नगर निगम अपने कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई करेगा?

  • क्या इस बाबू पर विभागीय जांच होगी?
  • क्या इसकी नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है?
  • या फिर मामले को दबाने की कोशिश की जाएगी?

तीन दिनों में बेनकाब होगा बाबू का चेहरा

इस पूरे मामले की जांच जारी है, और सूत्रों के अनुसार, तीन दिनों के अंदर सब कुछ साफ हो सकता है। इस बीच, नगर निगम के अन्य अधिकारियों पर भी सवाल उठ रहे हैं कि ऐसे कर्मचारी सरकारी सेवा में कैसे बने हुए हैं?

क्या होगा आगे?

  • अगर पुलिस में एफआईआर दर्ज होती है, तो बाबू की नौकरी पर गाज गिर सकती है
  • स्कूल टीचर का करियर और सम्मान भी इस मामले से प्रभावित हो सकता है।
  • नगर निगम की साख और छवि को भी नुकसान पहुंचा है।

निष्कर्ष: सरकारी विभागों में नैतिकता जरूरी

यह घटना केवल एक व्यक्ति का निजी मामला नहीं है, बल्कि सरकारी महकमों में अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है। ऐसे कर्मचारियों की वजह से सरकारी विभागों की छवि खराब होती है, और जनता का विश्वास टूटता है

अब देखने वाली बात होगी कि प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेकर कार्रवाई करता है या फिर यह भी किसी घोटाले की तरह दबा दिया जाएगा?

आपकी राय क्या है? क्या ऐसे भ्रष्ट और अय्याश अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए? कमेंट में बताएं!