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यूपी में बिजली निजीकरण के खिलाफ बड़ा अभियान: क्या यह “सफलता” नहीं बल्कि “संपत्ति की लूट” है?


उत्तर प्रदेश में बिजली कर्मचारियों ने 16 अप्रैल से निजीकरण के खिलाफ व्यापक जनसंपर्क अभियान शुरू करने का ऐलान किया है। दिल्ली, चंडीगढ़ और ओडिशा के अनुभवों को गिनाते हुए इसे “संपत्ति की लूट” करार दिया गया है।


उत्तर प्रदेश में बिजली निजीकरण के खिलाफ उठी आवाज

उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के निजीकरण की चर्चाओं के बीच विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने मोर्चा खोल दिया है। समिति के पदाधिकारियों ने साफ तौर पर कहा है कि यह कोई “सफलता की कहानी” नहीं, बल्कि सार्वजनिक संपत्ति की खुली लूट है।

चंडीगढ़: मुनाफे वाले विभाग को घाटे में बेचा गया

चंडीगढ़ विद्युत विभाग लगातार मुनाफा कमा रहा था—करीब 200 करोड़ रुपये प्रति वर्ष। इसके बावजूद 22,000 करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों को महज 871 करोड़ रुपये में निजी हाथों में सौंप दिया गया। कर्मचारियों ने सवाल किया है: क्या इसे “सफलता” कहा जाएगा?

दिल्ली: कर्मचारियों पर चला निजीकरण का चाबुक

दिल्ली में जब बिजली विभाग का निजीकरण हुआ, उस समय 5431 कर्मचारी कार्यरत थे। लेकिन एक साल के अंदर ही 1970 कर्मचारियों को जबरन सेवानिवृत्त कर दिया गया। इतना ही नहीं, उनका बकाया क्लेम भी नहीं दिया गया।

ओडिशा: 17 साल बाद निजी कंपनियों के लाइसेंस रद्द

ओडिशा का उदाहरण भी कुछ अलग नहीं है। वहां निजीकरण के 17 साल बाद, वर्ष 2015 में राज्य के विद्युत नियामक आयोग ने भारी भ्रष्टाचार और अक्षमता के चलते तीनों निजी कंपनियों के लाइसेंस रद्द कर दिए।

“कुर्बानी को तैयार हैं, लेकिन लूट बर्दाश्त नहीं होगी”

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने स्पष्ट किया है कि कर्मचारी किसी भी कुर्बानी को तैयार हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक संपत्ति की लूट नहीं होने दी जाएगी। समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि 16 अप्रैल से राज्य भर में विस्तृत जनसंपर्क अभियान शुरू किया जाएगा ताकि लोगों को निजीकरण के पीछे की सच्चाई बताई जा सके।


निष्कर्ष: निजीकरण – समाधान या संकट?

दिल्ली, चंडीगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों के अनुभव यह दर्शाते हैं कि बिजली विभाग का निजीकरण सिर्फ मुनाफे का सौदा नहीं, बल्कि कर्मचारियों और जनता दोनों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। उत्तर प्रदेश में उठी इस आवाज को नजरअंदाज करना मुश्किल होगा।