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कृषि विभाग में ट्रांसफर सीजन 2025 बेअसर, बाबुओं की सेटिंग और सिफारिश का बोलबाला


लखनऊ/बरेली, 17 मई 2025

– उत्तर प्रदेश के कृषि विभाग में इस साल का ट्रांसफर सीजन 15 मई से शुरू हो चुका है, जो 30 जून तक चलेगा। लेकिन यह सीजन भी बीते वर्षों की तरह भ्रष्टाचार, सिफारिश और अफसर-बाबू गठजोड़ की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है। ट्रांसफर आदेशों के बावजूद कर्मचारी अपने मनपसंद स्थानों पर डटे हुए हैं, और अधिकारी आंख मूंदे बैठे हैं।

लखनऊ से लेकर बरेली तक ट्रांसफर सीजन का मज़ाक

कृषि निदेशालय, लखनऊ ने 15 मई से 30 जून तक ट्रांसफर प्रक्रिया चलाने का आदेश दिया है। लेकिन विभागीय सूत्रों की मानें तो ज़मीनी हकीकत यह है कि ट्रांसफर केवल उन्हीं का होता है जो खुद हटना चाहते हैं, या फिर जिनकी सेटिंग कमजोर होती है।

“सेटिंग” से पटल बदलवा लेते हैं बाबू

बरेली में डिप्टी डायरेक्टर कार्यालय में तैनात शिवकुमार उर्फ बुलेट राजा का उदाहरण सामने है। 22 वर्षों से एक ही दफ्तर में जमे इस बाबू का ट्रांसफर गोंडा किया गया, लेकिन उन्होंने लखनऊ में ऊंची पहुंच के चलते सिर्फ पटल बदलवाकर वही पोस्टिंग बचा ली।

कोर्ट स्टे और अफसरों की चुप्पी

एक अन्य मामला गिरीशचंद्र उर्फ पहाड़ी बाबू का है। आलीशान कोठी और संपत्तियों के मालिक ये बाबू भी 22 साल से बरेली में ही जमे हुए हैं। ट्रांसफर आदेश के खिलाफ कोर्ट से स्टे लिया और अफसरों ने जानबूझकर काउंटर नहीं किया।

11 महीने से ट्रांसफर के बावजूद रिलीव नहीं हुआ बाबू

अमित कुमार वर्मा, जो जिला कृषि अधिकारी कार्यालय में तैनात हैं, का ट्रांसफर 29 जून 2024 को कृषि रक्षा विभाग में किया गया था। लेकिन 11 महीने बीतने के बाद भी वे रिलीव नहीं हुए। वजह? वे विभाग के “कमाऊ बाबू” माने जाते हैं। जिला कृषि अधिकारी द्वारा निदेशालय को पत्र भेजा गया कि उनके बिना ऑफिस का काम प्रभावित होगा।

अफसर भी खुद को बता रहे हैं मजबूर

राजेश कुमार, ज्वाइंट डायरेक्टर (बरेली मंडल) ने साफ कहा कि ट्रांसफर और रिलीव का अधिकार अब उनके पास नहीं है। यह अब सीधे कृषि निदेशालय और संबंधित जिला अधिकारी के हाथ में है।

क्या कहता है ट्रांसफर सीजन का नियम?

सरकारी नियमों के मुताबिक, किसी भी कर्मचारी को ट्रांसफर के बाद नियत समय में रिलीव किया जाना चाहिए। लेकिन कृषि विभाग में यह नियम अमल में नहीं, बल्कि उगाही के हथियार के रूप में इस्तेमाल हो रहा है।


निष्कर्ष:

कृषि विभाग में ट्रांसफर सीजन अब एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि कमाई का सीजन बन चुका है। जब तक अफसरों और बाबुओं की साठगांठ खत्म नहीं होगी, तब तक ट्रांसफर नीति केवल कागजों तक सीमित रहेगी।