
भूमिका: क्यों उठी बिजली निजीकरण के खिलाफ आवाज़?
उत्तर प्रदेश में किसानों और आम जनता के सामने अब बिजली का निजीकरण एक नई चुनौती बनकर खड़ा हो गया है। सरकार की इस नीति के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा और किसान एकता संघ ने राज्यव्यापी आंदोलन की चेतावनी दी है। किसानों का कहना है कि बिजली अब रोटी, कपड़ा और मकान की तरह एक बुनियादी आवश्यकता बन चुकी है, और इसका निजीकरण जनविरोधी है।
सिटी मजिस्ट्रेट बरेली को सौंपा गया सात सूत्रीय मांग पत्र
बरेली में किसान नेता डॉ. रवि नागर के नेतृत्व में किसानों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को संबोधित एक सात सूत्रीय मांग पत्र सिटी मजिस्ट्रेट को सौंपा। इस मांग पत्र में सरकार से बिजली निजीकरण पर तत्काल रोक लगाने की अपील की गई है।
मुख्य मांगें:
- बिजली का निजीकरण तुरंत रोका जाए।
- बर्खास्त बिजली कर्मचारियों को बहाल किया जाए।
- किसानों की ट्यूबवेलों पर जबरन मीटर लगाना बंद हो।
- ग्रामीण क्षेत्रों को 300 यूनिट मुफ्त बिजली दी जाए।
- सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली योजना लागू हो।
- आंदोलन कर रहे कर्मचारियों पर दमनात्मक कार्रवाई रोकी जाए।
- किसी भी योजना में जनता की सहमति जरूरी की जाए।
सरकार पर चुनावी वादे न निभाने का आरोप
किसान नेताओं ने सरकार को उसके चुनावी वादों की याद दिलाते हुए कहा कि अब तक ग्रामीण क्षेत्रों में 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने की योजना लागू नहीं हो सकी है। साथ ही, ट्यूबवेलों पर मीटर लगाने की योजना को भी जबरदस्ती बताया गया, जो किसानों की जेब पर अतिरिक्त बोझ डाल रही है।
संविधान और लोकतंत्र की दुहाई
डॉ. रवि नागर ने स्पष्ट कहा कि भारतीय संविधान हर नागरिक को शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार देता है। लेकिन सरकार बिजली कर्मचारियों और किसानों पर कार्रवाई कर रही है, जो निंदनीय है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने मांगों को गंभीरता से नहीं लिया, तो आंदोलन को और तेज़ किया जाएगा।
कौन-कौन रहे उपस्थित?
इस विरोध प्रदर्शन और मांग पत्र सौंपने के दौरान प्रमुख रूप से मौजूद रहे:
- पंडित राजेश शर्मा (युवा प्रकोष्ठ प्रदेश अध्यक्ष)
- डॉ. हरिओम राठौर (प्रदेश महासचिव)
- अमरजीत सिंह (मंडल मीडिया प्रभारी)
- संजय पाठक, गिरीश गोस्वामी, मैनेजर खान, प्रदीप यादव, रंजीत पाल आदि।
निष्कर्ष: क्या सरकार सुनेगी किसानों की आवाज़?
बिजली का निजीकरण केवल एक नीतिगत फैसला नहीं, बल्कि लाखों किसानों और आम जनता के जीवन पर सीधा प्रभाव डालने वाला निर्णय है। किसानों की मांगें न केवल तार्किक हैं, बल्कि संविधानसम्मत भी हैं। अब देखना यह होगा कि उत्तर प्रदेश सरकार इन मांगों पर संवेदनशीलता से विचार करती है या नहीं।