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बरेली में अस्पतालों की अनियमितताएं: मरीजों का शोषण और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की राह

बरेली में अस्पताल अनियमितताएं और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की चुनौतियां


बरेली में हाल ही में हुई समन्वय बैठक में एमएलसी महाराज सिंह ने निजी अस्पतालों की एक गंभीर अनियमितता को उजागर किया। उन्होंने बताया कि कुछ निजी अस्पताल अन्य अस्पतालों में कराई गई जांच को महज तीन दिन के अंतराल में अमान्य घोषित कर देते हैं, जिससे मरीजों को दोबारा जांच करानी पड़ती है और उनका बिल अनावश्यक रूप से बढ़ जाता है। यह मुद्दा मरीजों के शोषण से जुड़ा है, लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के चलते कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इस लेख में हम इस अनियमितता की गहराई और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की संभावनाओं पर चर्चा करेंगे।

अस्पतालों की अनियमितता: मरीजों पर आर्थिक बोझ

  • मुद्दा: एमएलसी महाराज सिंह ने बताया कि निजी अस्पताल मरीजों से अधिक बिल वसूलने के लिए जानबूझकर दूसरी जगह की गई जांच को खारिज करते हैं। उदाहरण के लिए, एक मरीज की ब्लड टेस्ट या अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट को “अमान्य” बताकर नई जांच कराने को मजबूर किया जाता है, भले ही पुरानी जांच पूरी तरह मानक हो।
  • प्रभाव: इससे मरीजों को आर्थिक नुकसान होता है, खासकर गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को, जो पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
  • बैठक में स्थिति: सीएमओ ने इस मामले में पत्र लिखने की बात कही, लेकिन यह पत्र किन अस्पतालों को भेजा गया, इसमें क्या कार्रवाई प्रस्तावित थी, या कोई विशिष्ट केस की जांच हुई या नहीं—इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई। यह दिखाता है कि अधिकारियों ने इस गंभीर मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया।

स्वास्थ्य सेवाओं में मौजूदा कमियां
बरेली में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति कई चुनौतियों से जूझ रही है:

  1. निजी अस्पतालों में जवाबदेही की कमी: अनावश्यक जांच और उपचार थोपने के मामले आम हैं, लेकिन नियामक तंत्र कमजोर है।
  2. सरकारी अस्पतालों पर दबाव: जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बुनियादी सुविधाओं, डॉक्टरों और दवाओं की कमी के कारण मरीज निजी अस्पतालों की ओर रुख करते हैं।
  3. निगरानी का अभाव: निजी अस्पतालों की जांच प्रक्रियाओं और बिलिंग पर नजर रखने के लिए कोई प्रभावी तंत्र नहीं है।
  4. जागरूकता की कमी: मरीजों को उनके अधिकारों और शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया की जानकारी नहीं होती।

स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए सुझाव
इस अनियमितता और स्वास्थ्य सेवाओं की कमियों को दूर करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. सख्त नियामक तंत्र:
    • निजी अस्पतालों की जांच और बिलिंग प्रक्रिया की नियमित ऑडिटिंग हो।
    • जांच अमान्य करने के लिए मानक दिशानिर्देश जारी किए जाएं, ताकि मनमानी रोकी जा सके।
    • क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए।
  2. शिकायत निवारण प्रणाली:
    • मरीजों के लिए एक हेल्पलाइन या ऑनलाइन पोर्टल शुरू किया जाए, जहां वे अनियमितताओं की शिकायत दर्ज कर सकें।
    • सीएमओ कार्यालय में एक विशेष सेल बनाया जाए, जो ऐसी शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई करे।
  3. सरकारी अस्पतालों का सशक्तिकरण:
    • जिला अस्पतालों में आधुनिक उपकरण, पर्याप्त स्टाफ और दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
    • सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को अपग्रेड कर निजी अस्पतालों पर निर्भरता कम की जाए।
  4. जागरूकता अभियान:
    • मरीजों को उनके अधिकारों, जैसे कि जांच की वैधता और बिलिंग पारदर्शिता, के बारे में जागरूक किया जाए।
    • पंचायतों और स्थानीय संगठनों के माध्यम से स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए जाएं।
  5. प्रशासनिक जवाबदेही:
    • समन्वय बैठकों में उठे स्वास्थ्य मुद्दों पर प्रगति की समीक्षा अनिवार्य हो।
    • सीएमओ और संबंधित अधिकारियों को समयबद्ध कार्रवाई के लिए जवाबदेह बनाया जाए।

भविष्य की राह

  • तकनीकी उपयोग: डिजिटल हेल्थ रिकॉर्ड सिस्टम लागू कर जांच रिपोर्ट को सभी अस्पतालों में मान्य किया जा सकता है, जिससे अनावश्यक दोहराव रोका जा सके।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: निजी अस्पतालों को सरकारी योजनाओं, जैसे आयुष्मान भारत, के तहत और अधिक पारदर्शी बनाया जाए।
  • कानूनी कार्रवाई: बार-बार अनियमितता करने वाले अस्पतालों के खिलाफ लाइसेंस रद्द करने जैसी सख्त कार्रवाई हो।

निष्कर्ष


बरेली में निजी अस्पतालों की अनियमितताएं, जैसे जांच को अमान्य करना, मरीजों के लिए आर्थिक और मानसिक बोझ बन रही हैं। समन्वय बैठक में इस मुद्दे पर ठोस कार्रवाई का अभाव निराशाजनक है। स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए सख्त निगरानी, सरकारी अस्पतालों का सशक्तिकरण और जनजागरूकता जरूरी है। प्रशासन को चाहिए कि वह इस दिशा में समयबद्ध कदम उठाए, ताकि मरीजों को राहत मिले और स्वास्थ्य सेवाएं अधिक पारदर्शी और सुलभ हों।

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