Tag Archives: गौ आधारित खेती

गौशालाओं की हकीकत: गोसेवा आयोग की बैठक और ज़मीनी सच्चाई का फर्क


गोसेवा आयोग की बैठक: योजनाएं बनाम ज़मीनी सच्चाई

गोसेवा आयोग की मंडल स्तरीय बैठक में बड़ी योजनाएं बनीं, लेकिन आवारा गायों की हालत जस की तस। जानिए पूरी रिपोर्ट

गोसेवा आयोग की बैठक: बड़ी योजनाएं, बड़े दावे

हाल ही में उत्तर प्रदेश में गोसेवा आयोग की मंडल स्तरीय बैठक आयोजित की गई, जिसकी अध्यक्षता आयोग के अध्यक्ष श्याम बिहारी गुप्ता ने की। बैठक में गोवंश संरक्षण, प्राकृतिक खेती, और गौशालाओं की व्यवस्थाओं पर गंभीर चर्चा हुई।

अध्यक्ष ने बताया कि राज्य में 621 गौशालाएं सक्रिय हैं, जिनमें 60,347 गोवंशीय पशु संरक्षित हैं। इसके अलावा 22 वृहद गौ संरक्षण केंद्र निर्माणाधीन हैं। सरकार का लक्ष्य है कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाए और हर किसान के पास कम से कम एक गाय हो।

महत्वपूर्ण घोषणाएं और योजनाएं

  • महिला स्वयं सहायता समूहों को जोड़ना
    1.18 करोड़ महिलाओं को गौ आधारित प्राकृतिक खेती से जोड़ने की योजना है, जिन्हें कृषि सखी के रूप में प्रशिक्षित किया जाएगा।
  • बायोगैस और प्राकृतिक उर्वरक
    गौशालाओं में बायोगैस संयंत्र लगाए जाएंगे और गाय के गोबर से खाद और जीवामृत तैयार किया जाएगा।
  • रेडियम बेल्ट और पशु सुरक्षा
    आवारा पशुओं को सड़क दुर्घटनाओं से बचाने के लिए रेडियम बेल्ट पहनाने का सुझाव दिया गया।
  • डिजिटल रिकॉर्ड और पारदर्शिता
    भूसा दान, गोवंश की संख्या, साइलेज वितरण आदि का पूरा रिकॉर्ड रखने की बात हुई।

ज़मीनी सच्चाई: क्या वाकई सब कुछ ‘ऑल इज़ वेल’ है?

बैठक में भले ही अफसरों ने रिपोर्ट में सब कुछ अच्छा बताया, लेकिन असलियत इसके उलट है।

  • आवारा गायें सड़कों पर भटक रही हैं
  • किसानों की फसलें चौपट हो रही हैं
  • पानी और चारे की भारी कमी है

गांवों में गायें भूख और प्यास से बेहाल हैं। रात के समय वे खेतों में घुसकर फसलें नष्ट कर रही हैं। किसान परेशान हैं और शासन-प्रशासन के पास जवाब नहीं।

क्या करें: समाधान की दिशा में कदम

  1. गौशालाओं की जिम्मेदारी पंचायतों की जगह NGOs या स्वैच्छिक संस्थाओं को दी जाए।
  2. मनरेगा के तहत कैटल शेड, नाद और यूरिन टैंक का निर्माण हो।
  3. ग्राम स्तर पर निगरानी समिति बने जो वास्तविक रिपोर्ट तैयार करे।
  4. प्राकृतिक खेती और जैविक उत्पादों का स्थानीय बाजार बनाया जाए।

निष्कर्ष

गोसेवा आयोग की योजनाएं कागज़ पर मजबूत हैं, लेकिन जब तक जमीनी स्तर पर ईमानदारी से क्रियान्वयन नहीं होगा, गायों की हालत नहीं सुधरेगी। किसानों की समस्याएं भी तब तक हल नहीं होंगी, जब तक प्रशासन वास्तविकता को माने और उसे सुधारने के लिए कड़े कदम उठाए।


क्या आपके क्षेत्र की गौशालाएं सही तरीके से संचालित हो रही हैं? कमेंट करके अपनी राय ज़रूर दें।