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अयोध्या में बिजली विभाग का बड़ा फैसला: कर्मचारी नेता पर ₹5.5 करोड़ का जुर्माना, जानिए क्यों

अयोध्या में बिजली विभाग ने कर्मचारी नेता जय गोविंद पर ₹5.5 करोड़ का जुर्माना लगाया है। जानिए इस जुर्माने की वजह, कानूनी स्थिति और प्रशासन का पक्ष इस विस्तृत ब्लॉग में।


🔥 क्या है मामला?

अयोध्या में बिजली विभाग और कर्मचारी संगठनों के बीच तनाव उस समय बढ़ गया जब मुख्य अभियंता (वितरण) अशोक कुमार चौरसिया ने विद्युत मजदूर पंचायत उत्तर प्रदेश के जिला अध्यक्ष जय गोविंद पर ₹5.5 करोड़ रुपये का जुर्माना ठोक दिया। यह जुर्माना धरना-प्रदर्शन और लाउडस्पीकर के उपयोग को आधार बनाकर लगाया गया।


⚖️ कानून का हवाला और अभियंता की प्रतिक्रिया

यह नोटिस उत्तर प्रदेश राजकीय विद्युत उपक्रम अधिनियम 1958 की धारा 3 के तहत जारी किया गया है।

लेकिन हैरानी की बात यह रही कि जब मुख्य अभियंता से पूछा गया कि यह नोटिस किस धारा के तहत भेजा गया है, तो उन्होंने जवाब दिया:

“मुझे कोई धारा या कानून नहीं पता है, मैंने सिर्फ नोटिस जारी किया है। कानून की धाराएं पुलिस और न्यायालय तय करेंगे।”

यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया और विभाग की कानूनी समझदारी पर सवाल खड़े हो गए।


📅 धरना कब हुआ और क्या असर पड़ा?

जय गोविंद ने बताया कि उन्होंने 22 अप्रैल से 10 मई 2025 तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया।
मुख्य अभियंता का आरोप है कि:

  • धरना के दौरान उच्च तीव्रता वाले लाउडस्पीकर का उपयोग हुआ।
  • इससे बिजली आपूर्ति, विभागीय कार्य और राजस्व वसूली बाधित हुई।
  • परिणामस्वरूप, सरकार को भारी आर्थिक नुकसान हुआ।

💸 30 दिन में भरना होगा जुर्माना

जारी किए गए नोटिस के अनुसार:

  • जय गोविंद को 30 दिन की मोहलत दी गई है।
  • समय सीमा में जुर्माना न भरने पर यह राशि भू-राजस्व बकाया के रूप में वसूली जाएगी।

🧑‍🏭 जय गोविंद का जवाब

जय गोविंद ने इसे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बताते हुए कहा:

“इतिहास में पहली बार किसी कर्मचारी नेता पर इतना बड़ा जुर्माना लगाया गया है। यह तानाशाही है और हमें चुप कराने की कोशिश की जा रही है।”

उन्होंने यह भी कहा कि वह इस कार्रवाई के खिलाफ न्यायालय में चुनौती देंगे।


📣 सोशल मीडिया और यूनियनों का विरोध

इस कार्रवाई के खिलाफ कई ट्रेड यूनियनों और सामाजिक संगठनों ने विरोध दर्ज कराया है।
#JusticeForJayGovind और #ElectricityProtestUP जैसे हैशटैग्स ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे हैं।


निष्कर्ष (Conclusion)

इस मामले ने एक बार फिर दिखाया है कि श्रमिक आंदोलनों और सरकारी विभागों के बीच संवाद की कमी किस तरह बड़ी प्रशासनिक कार्रवाई का कारण बन सकती है। अब देखना यह है कि:

  • क्या जय गोविंद पर लगाया गया ₹5.5 करोड़ का जुर्माना कानूनी रूप से टिक पाएगा?
  • या फिर यह मामला न्यायिक समीक्षा में निरस्त हो जाएगा?