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UP में बिजली कंपनियों की लापरवाही! ₹44 हजार करोड़ खर्च के बाद भी लाइन हानि 13.78% पर अटकी, CBI जांच की मांग


लखनऊ, 24 मई 2025 – उत्तर प्रदेश में बिजली व्यवस्था पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। सरकारी योजना R.D.S.S. (Revamped Distribution Sector Scheme) के तहत ₹44,094 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद लाइन हानियां (Line Losses) में कोई कमी नहीं आई है। राज्य की बिजली कंपनियों ने 2024-25 की तरह ही 2025-26 में भी औसत 13.78% लाइन हानि दर्ज की है।

बिजली कंपनियों के आंकड़े जस के तस

बिजली कंपनी2024-252025-26
दक्षिणांचल15.53%15.53%
मध्यांचल13.59%13.59%
पश्चिमांचल11.18%11.18%
पूर्वांचल16.23%16.23%
केस्को7.68%7.68%
कुल औसत13.78%13.78%

इन आंकड़ों का खुलासा नियामक आयोग में दाखिल की गई वार्षिक राजस्व आवश्यकता (ARR) रिपोर्ट में हुआ है।

उपभोक्ता परिषद ने लगाए गंभीर आरोप

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि आरडीएसएस योजना के तहत करोड़ों खर्च होने के बावजूद लाइन हानियों में कोई सुधार नहीं हुआ। उन्होंने आरोप लगाया कि यह खर्च 42 जिलों में बिजली का निजीकरण करने वाले घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया।

वर्मा का बयान:

“दक्षिणांचल, मध्यांचल, पश्चिमांचल, पूर्वांचल और केस्को में हजारों करोड़ खर्च करने के बाद भी परिणाम शून्य हैं। यह जनता के पैसे की खुली बर्बादी है और CBI जांच जरूरी है।”

कहां कितना खर्च हुआ?

  • दक्षिणांचल: ₹7,434 करोड़
  • मध्यांचल: ₹13,539 करोड़
  • पश्चिमांचल: ₹12,695 करोड़
  • पूर्वांचल: ₹9,481 करोड़
  • केस्को: ₹943 करोड़

क्या है R.D.S.S. योजना?

Revamped Distribution Sector Scheme केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई एक योजना है जिसका उद्देश्य बिजली वितरण प्रणाली को मजबूत करना और लाइन हानियों को 15% से नीचे लाना था। इसमें स्मार्ट मीटर, इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार और तकनीकी अपग्रेडेशन जैसे कार्य शामिल थे।

CBI जांच की मांग ने बढ़ाई हलचल

उपभोक्ता परिषद ने इस पूरे मामले की CBI से जांच कराने की मांग की है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इतनी बड़ी धनराशि खर्च करने के बाद भी हानि कम नहीं हुई तो यह नीति विफलता के साथ-साथ भ्रष्टाचार का मामला भी हो सकता है।


निष्कर्ष:

उत्तर प्रदेश की बिजली कंपनियां एक बार फिर कटघरे में हैं। 44 हजार करोड़ खर्च करने के बावजूद बिजली की लाइन हानियां जस की तस हैं, जिससे न केवल सरकारी योजनाओं पर सवाल उठते हैं बल्कि आम उपभोक्ता की जेब पर भी सीधा असर पड़ रहा है।