
बिहार की पंचायतों ने सरकारी फंड से किए गए विकास कार्यों का हिसाब देने में बड़ी लापरवाही बरती है। 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र (यूसी) अब तक लंबित है। राज्य सरकार बार-बार हिदायत दे रही है, लेकिन पंचायतें और संबंधित अधिकारी हिसाब देने में आनाकानी कर रहे हैं।
क्या है मामला?
1 अप्रैल 2019 के बाद उपयोगिता प्रमाण पत्र को ऑनलाइन भेजना अनिवार्य कर दिया गया था। इससे पहले के प्रमाण पत्र फिजिकल फॉर्म में महालेखाकार को देने होते थे। पंचायती राज संस्थाओं को यह प्रमाण पत्र नियमित रूप से जमा करना था, लेकिन 2002-03 से 2022-23 तक आवंटित 26,182 करोड़ रुपये में से एक बड़ी राशि का हिसाब अब तक नहीं दिया गया।
कहां खर्च होनी थी राशि?
यह राशि पंचायतों में विकास कार्यों जैसे—
✔️ नल-जल योजना
✔️ सड़क, गली और नाली निर्माण
✔️ छठ घाट और सार्वजनिक कुओं का जीर्णोद्धार
✔️ ग्रामीण पेयजल आपूर्ति
✔️ सिंचाई नालियों का निर्माण
सरकार ने दी आखिरी चेतावनी
पंचायती राज विभाग ने साफ कर दिया है कि अगर उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया गया, तो 15वें और 6ठे राज्य वित्त आयोग की राशि रोक दी जाएगी। यही नहीं, पंचायतों से जुड़े अधिकारियों पर भी सख्त कार्रवाई की जाएगी।
क्या वाकई 20 हजार करोड़ गटक गए?
अब सवाल उठता है कि अगर राशि खर्च हुई, तो हिसाब क्यों नहीं दिया गया? क्या यह घोटाला है या सिर्फ कागजी लापरवाही? बिहार में विकास योजनाओं के नाम पर पहले भी बड़े घोटाले हो चुके हैं, इसलिए इस मामले में भी गंभीर जांच की जरूरत है।
आपका क्या कहना है—क्या ये भ्रष्टाचार का मामला है या सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही?