
बरेली के सरदार पटेल चौराहा (पूर्व में आयूब खान चौराहा) और सिविल लाइंस में वक्फ बोर्ड की करोड़ों की संपत्ति पर फर्जी दस्तावेजों और नगर निगम की मिलीभगत से कब्जा कर लिया गया। पढ़ें पूरी कहानी।
बरेली की वक्फ संपत्तियों पर मंडरा रहा है खतरा
उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में वक्फ बोर्ड की बेशकीमती संपत्तियों पर अवैध कब्जों और धोखाधड़ी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। ताजा मामला सरदार पटेल चौराहा (पूर्व में आयूब खान चौराहा) और सिविल लाइंस इलाके का है, जहां करोड़ों रुपये की वक्फ संपत्ति को फर्जी दस्तावेजों के ज़रिए हड़पने का प्रयास किया गया।
सरदार पटेल चौराहा: वक्फ की जमीन पर बन गई अत्याधुनिक मार्केट
बरेली के प्रमुख व्यापारिक केंद्र बन चुके सरदार पटेल चौराहा की जमीन, जो कभी वक्फ बोर्ड के नाम दर्ज थी, अब अत्याधुनिक मार्केट में तब्दील हो चुकी है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, यह जमीन औने-पौने दामों में बेच दी गई और अब वहां महंगे कॉमर्शियल शोरूम और कार्यालय खड़े हैं।
प्रश्न यह है: क्या यह बिक्री कानूनी थी? क्या वक्फ बोर्ड की अनुमति ली गई थी? इसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग अब तेज होती जा रही है।
सिविल लाइंस में करोड़ों की वक्फ प्रॉपर्टी का फर्जीवाड़ा
दूसरी ओर, सिविल लाइंस में वक्फ की संपत्ति पर फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से नामांतरण कराया गया। आरोप है कि यूसुफ जमाल, अलीगढ़ निवासी, ने अन्य लोगों के साथ मिलकर सुनियोजित षड्यंत्र के तहत यह कार्य किया। नगर निगम में मिलीभगत से वक्फ संपत्ति में उनका नाम दर्ज किया गया और फिर मूल फाइल ही गायब कर दी गई।
नगर निगम की भूमिका पर सवाल
नगर निगम के कुछ कर्मचारियों पर गंभीर आरोप लगे हैं कि उन्होंने जानबूझकर फर्जी कागज़ों के आधार पर नाम दर्ज किया और फिर रिकॉर्ड गायब करवा दिया। इससे वक्फ मुतवल्ली को कानूनी लड़ाई में गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
डॉक्टर फैमिली और क्षत्रिय महासभा नेता की संदिग्ध भूमिका
मुतवल्ली बरकत नबी खान ने यह भी आरोप लगाया है कि इस साजिश में एक डॉक्टर परिवार और क्षत्रिय महासभा के एक नेता की भूमिका रही है। उनके इशारे पर वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने की कोशिश की गई और एक मकान की बाउंड्री तक तोड़ दी गई।
एफआईआर दर्ज, जांच जारी
मामले की गंभीरता को देखते हुए एसपी सिटी के आदेश पर कोतवाली में तीन नामजद और कई अज्ञात लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और अन्य गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। अब निगाहें जिला प्रशासन और वक्फ बोर्ड पर हैं कि वे इस मामले में क्या ठोस कार्रवाई करते हैं।
निष्कर्ष: क्या वक्फ संपत्तियां सुरक्षित हैं?
बरेली के इन मामलों ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियां कितनी सुरक्षित हैं? यदि नगर निगम और अन्य सरकारी संस्थानों में बैठकर ही वक्फ की संपत्तियों को खुर्द-बुर्द किया जाएगा, तो अल्पसंख्यक समुदाय की धार्मिक और सामाजिक संपत्तियों की सुरक्षा एक बहुत बड़ा सवाल बन जाएगी।
अब जरूरी है कि जिला प्रशासन, वक्फ बोर्ड और एंटी करप्शन एजेंसियां मिलकर निष्पक्ष और पारदर्शी जांच करें ताकि दोषियों को सजा मिले और वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।