जस्टिस यशवंत वर्मा: उनके 5 ऐतिहासिक फैसले और हालिया विवाद

जस्टिस यशवंत वर्मा भारतीय न्यायपालिका का एक चर्चित नाम हैं। इलाहाबाद और दिल्ली हाई कोर्ट में अपने 11 साल के कार्यकाल में उन्होंने कई अहम फैसले दिए, जिनका व्यापक सामाजिक और कानूनी प्रभाव पड़ा। हाल ही में उनके सरकारी आवास से कथित तौर पर भारी मात्रा में कैश बरामद होने की खबरें सामने आईं, जिससे वह विवादों में घिर गए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए तीन जजों की कमिटी गठित कर दी है और फिलहाल उन्हें न्यायिक जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया है।

इस ब्लॉग में हम जस्टिस यशवंत वर्मा के पांच ऐतिहासिक फैसलों पर नजर डालेंगे, जिन्होंने भारतीय कानून व्यवस्था को प्रभावित किया।

1. डॉ. कफ़ील ख़ान को जमानत (2018)

गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से 60 बच्चों की मौत के मामले में डॉ. कफील खान को चिकित्सीय लापरवाही के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। सात महीने तक हिरासत में रहने के बाद जस्टिस वर्मा ने उन्हें जमानत दी और कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे यह साबित हो सके कि डॉ. कफील की लापरवाही से बच्चों की मौत हुई।

इस फैसले का प्रभाव:

  • सरकार और मेडिकल संस्थानों की जवाबदेही पर सवाल उठे।
  • चिकित्सकों के अधिकार और दायित्वों पर चर्चा तेज हुई।
  • न्यायपालिका की निष्पक्षता को सराहा गया।

2. कांग्रेस की इनकम टैक्स याचिका खारिज (2024)

कांग्रेस पार्टी पर 210 करोड़ रुपये का टैक्स बकाया था, जिसके कारण इनकम टैक्स विभाग ने उनके बैंक अकाउंट फ्रीज़ कर दिए। कांग्रेस ने इसे कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन जस्टिस यशवंत वर्मा और जस्टिस पुरूषेन्द्र कुमार कौरव की बेंच ने याचिका खारिज कर दी।

इस फैसले का प्रभाव:

  • राजनीतिक दलों के वित्तीय पारदर्शिता पर बहस छिड़ी।
  • सरकार को टैक्स वसूलने की कानूनी ताकत मिली।
  • कांग्रेस की वित्तीय स्थिति पर असर पड़ा।

3. प्रवर्तन निदेशालय (ED) की शक्तियों पर रोक (2023)

जनवरी 2023 में जस्टिस वर्मा ने फैसला दिया कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) सिर्फ मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की जांच कर सकता है, अन्य अपराधों की नहीं। यह फैसला PMLA कानून की व्याख्या को लेकर बेहद महत्वपूर्ण रहा।

इस फैसले का प्रभाव:

  • जांच एजेंसियों के अधिकारों और उनकी सीमाओं पर स्पष्टता आई।
  • ED के दुरुपयोग को लेकर नई बहस छिड़ी।
  • कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी एजेंसी को मनमाने ढंग से जांच करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

4. दिल्ली आबकारी नीति घोटाले में मीडिया रिपोर्टिंग (2022)

दिल्ली शराब नीति घोटाले में AAP नेता विजय नायर ने आरोप लगाया कि मीडिया में जांच एजेंसियों की गोपनीय जानकारी लीक हो रही है। जस्टिस वर्मा ने इस पर संज्ञान लिया और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA) से जवाब मांगा।

इस फैसले का प्रभाव:

  • मीडिया ट्रायल और जांच एजेंसियों की निष्पक्षता पर बहस हुई।
  • न्यूज़ चैनलों की जिम्मेदारी को लेकर चर्चा तेज हुई।
  • न्यायपालिका और मीडिया के संबंधों को लेकर कानूनी बहस बढ़ी।

5. रेस्तरां बिल पर सर्विस चार्ज विवाद (2022)

केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने आदेश दिया था कि होटल और रेस्टोरेंट ग्राहकों से सर्विस चार्ज नहीं वसूल सकते। जस्टिस वर्मा ने इस आदेश पर रोक लगाते हुए कहा कि अगर मेनू में साफ लिखा हो तो सर्विस चार्ज लिया जा सकता है

इस फैसले का प्रभाव:

  • रेस्तरां और उपभोक्ता अधिकारों के बीच संतुलन बना।
  • उपभोक्ताओं को स्पष्ट जानकारी देने की बाध्यता बढ़ी।
  • बाद में इस आदेश में संशोधन कर सर्विस चार्ज को “स्टाफ कॉन्ट्रिब्यूशन” नाम दिया गया और इसे 10% तक सीमित किया गया।

जस्टिस वर्मा पर लगे आरोप और हालिया विवाद

मार्च 2025 में दिल्ली हाई कोर्ट के सरकारी आवास में आग लगने की घटना के बाद कथित रूप से वहां से भारी मात्रा में नकदी मिलने की खबरें सामने आईं। इस मामले में जस्टिस वर्मा ने इसे साजिश करार दिया और किसी भी तरह के गलत आचरण से इनकार किया।

मामले की जांच और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया

  • सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने तीन जजों की जांच कमेटी गठित की।
  • जस्टिस वर्मा को फिलहाल कोई न्यायिक जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई
  • यह मामला न्यायपालिका की पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।

निष्कर्ष

जस्टिस यशवंत वर्मा का अब तक का न्यायिक करियर प्रभावशाली रहा है, लेकिन हालिया विवाद ने उनकी छवि को प्रभावित किया है। उनके फैसले कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक रूप से अहम रहे हैं, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वह इस विवाद से खुद को निर्दोष साबित कर पाते हैं या नहीं


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