
पलिया तहसील, लखीमपुर खीरी | 21 अप्रैल 2025
लखीमपुर खीरी जनपद की पलिया तहसील के थारू जनजाति बहुल सूरमा गांव में सरकारी राशन वितरण में भारी अनियमितताओं को लेकर ग्रामीणों का आक्रोश अब सड़कों पर दिखाई देने लगा है। कोटेदार द्वारा राशन में की जा रही घटतौली और भ्रष्टाचार की लगातार शिकायतों के बावजूद सप्लाई इंस्पेक्टर, एसडीएम और डीएसओ कार्यालय तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। इससे नाराज़ ग्रामीणों ने प्रदर्शन कर प्रशासन से जवाबदेही की मांग की है।
तीन महीने से चल रही शिकायतें, लेकिन कार्रवाई शून्य
ग्रामीणों और ग्राम प्रधान का कहना है कि पिछले तीन महीनों से कोटेदार की घटतौली, कार्डधारकों को अपूर्ण राशन देना, और गलत रिकॉर्डिंग जैसी अनियमितताओं की लगातार शिकायतें की जा रही हैं। शिकायतें लिखित रूप से ब्लॉक कार्यालय, खाद्य एवं रसद विभाग, सप्लाई इंस्पेक्टर और जिला पूर्ति अधिकारी (DSO) तक पहुंचाई गईं, लेकिन अब तक किसी भी स्तर पर कोई जांच नहीं हुई।
‘जांच के नाम पर दिखावा, कार्रवाई कहीं नहीं’ – ग्रामीणों का आरोप
सूरमा गांव के ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारी केवल ‘जांच’ के नाम पर गांव में आकर सूचना एकत्र करते हैं, लेकिन न तो कोटेदार पर कोई कार्रवाई होती है और न ही राशन वितरण में सुधार। इससे लोगों में यह भावना पैदा हो रही है कि अधिकारी कोटेदार को संरक्षण दे रहे हैं।
एक ग्रामीण ने बताया: “हर महीने राशन में 2-3 किलो की कटौती की जाती है। शिकायत करने पर कहा जाता है कि अगली बार दे देंगे, लेकिन फिर वही हाल।”
थारू जनजाति के अधिकारों का हनन?
सूरमा गांव थारू जनजाति बहुल क्षेत्र है, जो पहले से ही सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। इस समुदाय के साथ ऐसा व्यवहार सरकारी योजनाओं के उद्देश्य को ही विफल करता है। यह मुद्दा अब जनजातीय अधिकारों और सामाजिक न्याय से भी जुड़ गया है।
सीएम योगी की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति पर सवाल
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति अपनाने की बात कही थी। लेकिन सूरमा गांव की स्थिति इस नीति की जमीनी हकीकत को उजागर करती है।
जहां थारू समुदाय जैसे संवेदनशील वर्ग के साथ भी न्याय नहीं हो पा रहा, वहां आमजन की उम्मीदें धूमिल होती नजर आ रही हैं।
ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, मांगी उच्च स्तरीय जांच
सप्लाई विभाग की उदासीनता और कोटेदार की बढ़ती मनमानी के खिलाफ ग्रामीणों ने सूरमा ग्राम पंचायत में विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने मुख्यमंत्री, जिलाधिकारी और मंडलायुक्त को मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की।
प्रमुख मांगें:
- कोटेदार की तत्काल निलंबन।
- तीन महीने की राशन वितरण की जांच।
- पीड़ित कार्डधारकों को पूरा हक दिलाना।
- जांच के लिए स्वतंत्र एजेंसी का गठन।
निष्कर्ष:
सूरमा गांव का मामला सिर्फ एक कोटेदार की मनमानी का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की लापरवाही और जनजातीय समुदाय के अधिकारों के हनन का प्रतीक बन चुका है। यदि जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो यह मुद्दा और बड़ा रूप ले सकता है।