
भारत में स्वास्थ्य सेवाएं लगातार सवालों के घेरे में रहती हैं। हाल ही में आंवला से सपा सांसद नीरज मौर्य ने प्राइवेट अस्पतालों पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि “बरेली में प्राइवेट अस्पताल लूट का अड्डा बने हुए हैं।” उनके इस बयान पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और इसे डॉक्टरों के समर्पण का अपमान बताया।
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सच में प्राइवेट अस्पताल मरीजों की लूट कर रहे हैं? आइए इस विषय पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों की लूट – हकीकत या भ्रम?
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत किसी से छिपी नहीं है। सरकारी अस्पतालों में भीड़ और संसाधनों की कमी के चलते अधिकतर मरीज प्राइवेट अस्पतालों की ओर रुख करते हैं। लेकिन क्या ये निजी अस्पताल जरूरत से ज्यादा पैसा वसूल रहे हैं?
1. गैरजरूरी टेस्ट और महंगे इलाज
- अक्सर मरीजों से ऐसे मेडिकल टेस्ट करवाए जाते हैं जो जरूरी नहीं होते।
- कुछ अस्पताल मुनाफे के लिए अनावश्यक ऑपरेशन तक करवाने की कोशिश करते हैं।
- दवाइयां और मेडिकल उपकरण बाजार से महंगे दामों पर बेचे जाते हैं।
2. आपात स्थिति में महंगे चार्जेस
- एक्सीडेंट या गंभीर बीमारी के मरीजों को भर्ती करने से पहले भारी भरकम डिपॉजिट मांगा जाता है।
- आईसीयू और वेंटिलेटर चार्ज कई गुना ज्यादा लिया जाता है।
3. बीमा के नाम पर ठगी
- कई बार अस्पताल बीमा कंपनियों के साथ मिलकर अधिक बिलिंग कराते हैं, जिससे मरीजों की जेब पर भारी असर पड़ता है।
- हेल्थ इंश्योरेंस होने के बावजूद मरीजों से एक्स्ट्रा चार्ज वसूला जाता है।
बरेली का हेल्थकेयर सिस्टम – क्या सुधार की जरूरत है?
बरेली में 600 से अधिक प्राइवेट अस्पताल और क्लीनिक हैं। यहां तक कि उत्तराखंड और अन्य जिलों के मरीज भी इलाज के लिए बरेली आते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या हर अस्पताल सही तरीके से काम कर रहा है?
IMA का रुख – डॉक्टरों की गरिमा बनाम हकीकत
IMA का कहना है कि सांसद का बयान डॉक्टरों के समर्पण का अपमान है। उन्होंने नीरज मौर्य से माफी मांगने की मांग की। लेकिन जनता का कहना है कि इस विषय पर निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।
समाधान क्या हो सकता है?
- सख्त सरकारी निगरानी:
- अस्पतालों की रेट लिस्ट सार्वजनिक की जाए और उसका पालन सुनिश्चित किया जाए।
- हर अस्पताल में एक ग्रिवांस सेल हो, जहां मरीज अपनी शिकायतें दर्ज कर सकें।
- डिजिटल ट्रांसपेरेंसी:
- बिलिंग और इलाज से जुड़ी सारी जानकारी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हो।
- मरीजों को ऑनलाइन फीडबैक और रेटिंग सिस्टम मिले, जिससे लुटेरों की पहचान हो सके।
- जनता की भागीदारी:
- मरीजों को जागरूक होना होगा और जरूरत से ज्यादा बिलिंग पर सवाल उठाना होगा।
- सोशल मीडिया और हेल्थकेयर फोरम्स के जरिए गलत प्रैक्टिस उजागर करनी होगी।
- स्वास्थ्य बीमा की पारदर्शिता:
- इंश्योरेंस कंपनियों और अस्पतालों के बीच होने वाले गुप्त समझौतों पर रोक लगे।
- पॉलिसी होल्डर्स को बीमा क्लेम की प्रक्रिया आसान और पारदर्शी मिले।
निष्कर्ष: समाधान जरूरी है, बहस नहीं
सांसद नीरज मौर्य का बयान भले ही विवादित हो, लेकिन प्राइवेट अस्पतालों में लूट की घटनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। सरकार को इस मुद्दे पर गहरी जांच करनी चाहिए और आम जनता को न्याय दिलाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
आपका इस विषय पर क्या कहना है? क्या आपने भी कभी अस्पतालों में इस तरह की लूट का सामना किया है? अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर बताएं।