कैलकोलिथिक युग क्या था? नारा हुडा खुदाई से मिला 7000 साल पुराना खजाना

भारत का इतिहास बेहद समृद्ध और रहस्यमयी है। हाल ही में ओडिशा के खुर्दा जिले में नारा हुडा नामक स्थान पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की खुदाई ने एक ऐसी प्राचीन सभ्यता के अवशेष उजागर किए हैं, जो कैलकोलिथिक युग (ताम्र-पाषाण युग) से संबंधित हैं। यह खोज न केवल भारत की प्राचीन विरासत को दर्शाती है, बल्कि दुनिया भर के पुरातत्वविदों को हैरान कर रही है। आइए जानते हैं कि कैलकोलिथिक युग क्या था और नारा हुडा की खुदाई में क्या-क्या मिला।

कैलकोलिथिक युग: ताम्र-पाषाण युग की शुरुआत

कैलकोलिथिक युग, जिसे ताम्र-पाषाण युग भी कहा जाता है, मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। यह नवपाषाण युग (न्यू स्टोन एज) के बाद और कांस्य युग से पहले का समय था, जो लगभग 4000 ईसा पूर्व से 2000 ईसा पूर्व तक माना जाता है। इस युग में इंसानों ने पहली बार पत्थर के औजारों के साथ तांबे का इस्तेमाल शुरू किया। तांबे को पिघलाकर चाकू, कुल्हाड़ी, मछली पकड़ने के कांटे, बर्तन और हथियार बनाए गए। बाद में तांबे और टिन को मिलाकर कांस्य बनाया गया, जो अधिक मजबूत था। भारत में यह युग ग्रामीण संस्कृति का प्रतीक था, और इसकी बस्तियां छोटानागपुर पठार से लेकर गंगा के मैदानों तक फैली थीं।

नारा हुडा खुदाई: ओडिशा में मिली प्राचीन विरासत

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से करीब 30 किलोमीटर दूर खुर्दा जिले के तिरीमल गांव के पास नारा हुडा में ASI की टीम 2021 से खुदाई कर रही है। तीसरे चरण की खुदाई में कैलकोलिथिक युग के अवशेष मिले हैं, जो लगभग 2000 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व के बीच के हैं। पुरातत्ववेत्ता पीके दीक्षित के अनुसार, यहां गोल झोपड़ियों के ढांचे, मिट्टी की लाल दीवारें, तांबे और पत्थर के औजार मिले हैं। इन खोजों से पता चलता है कि 7000 साल पहले लोग यहां खेती करते थे और एक संगठित जीवन जीते थे।

इसके अलावा, लौह युग (1000 ईसा पूर्व से 400 ईसा पूर्व) और प्रारंभिक ऐतिहासिक काल (400 ईसा पूर्व से 200 ईसा पूर्व) के भी प्रमाण मिले हैं। इससे यह साफ होता है कि नारा हुडा में तीन अलग-अलग समय में बस्तियां थीं।

क्या-क्या मिला नारा हुडा में?

नारा हुडा की खुदाई में मिले अवशेष भारतीय विरासत का अनमोल खजाना हैं। कुछ प्रमुख खोजें इस प्रकार हैं:

  • तांबे और पत्थर के औजार: चाकू, कुल्हाड़ी, और मछली पकड़ने के कांटे।
  • मिट्टी के बर्तन: लाल, भूरे, चॉकलेट और काले-लाल रंग के बर्तन, जिनमें से कुछ हाथ से बने हैं।
  • गोल झोपड़ियां: मिट्टी की लाल दीवारों और खंभों के छेद वाले ढांचे।
  • अन्य सामग्री: हड्डियों से बनी चीजें, कांच की चूड़ियां, मिट्टी की मूर्तियां, और पत्थर को चमकाने के औजार।

ये खोजें बताती हैं कि उस समय के लोग न केवल खेती करते थे, बल्कि हस्तशिल्प और व्यापार में भी निपुण थे।

भारत में कैलकोलिथिक युग के अन्य स्थल

नारा हुडा के अलावा भारत में कई अन्य स्थानों पर भी ताम्र-पाषाण युगीन बस्तियों के प्रमाण मिले हैं। इनमें शामिल हैं:

  • राजस्थान: गिलुंद, बागोर, और अहार।
  • महाराष्ट्र: दैमाबाद, इनामगांव, नेवासा, और जोरवे संस्कृति।
  • मध्य प्रदेश: नवदाटोली, नागदा, कायथा, और एरण।

ये सभी स्थल हड़प्पा सभ्यता से पहले के हैं और भारत की प्राचीन ग्रामीण संस्कृति को दर्शाते हैं।

क्यों महत्वपूर्ण है यह खोज?

नारा हुडा की खुदाई से मिले अवशेष हमें हमारे इतिहास की गहराई में ले जाते हैं। यह खोज बताती है कि हजारों साल पहले लोग कैसे रहते थे, क्या खाते थे, और कैसे काम करते थे। पुरातत्वविदों का मानना है कि उस समय महानदी डेल्टा के आसपास के लोग अच्छी जीवनशैली जीते थे, लेकिन बाद में लौह युग और प्रारंभिक ऐतिहासिक काल में यह खराब हो गई। यह जानकारी हमें अपनी जड़ों को समझने और संरक्षित करने में मदद करती है।

हालांकि, झारखंड जैसे क्षेत्रों में कोयला खनन के कारण ऐसी कई प्राचीन विरासतें नष्ट हो रही हैं, जो चिंता का विषय है।

निष्कर्ष

कैलकोलिथिक युग और नारा हुडा की खुदाई भारत के प्राचीन इतिहास का एक जीवंत चित्र प्रस्तुत करती है। यह खजाना सोने-चांदी से कहीं अधिक मूल्यवान है, क्योंकि यह हमें हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ता है। ASI की यह खोज न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक वरदान है। क्या आप भी इस प्राचीन सभ्यता के बारे में और जानना चाहते हैं? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं!


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