सिन्दूर ऑपरेशन: भारतीय सेना की ऐतिहासिक कार्रवाई, लेकिन भाजपा की सिन्दूर योजना पर उठा विवाद

📅 प्रकाशित तिथि: 30 मई 2025
🖊️ रिपोर्टर: J P Gangwarr
📍 लखनऊ, उत्तर प्रदेश


🔴 भारतीय सेना का ‘सिन्दूर ऑपरेशन’ बना राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक

भारतीय सेना द्वारा हाल ही में अंजाम दिए गए ‘सिन्दूर ऑपरेशन’ ने पूरे देश को गौरव का अनुभव कराया है। यह सैन्य कार्रवाई पहुलगाम आतंकी हमले का जवाब था, जिसमें कई भारतीय महिलाएं विधवा हो गई थीं। सेना ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमला कर सैकड़ों आतंकवादियों को ढेर कर दिया। यह ऑपरेशन न केवल एक सामरिक विजय थी, बल्कि उन उजड़े सिन्दूरों का सम्मान भी था, जो आतंक की भेंट चढ़ गए।


🕉️ भगवा परिषद ने किया भाजपा की सिन्दूर वितरण योजना का विरोध

जहाँ एक ओर देश की जनता और विभिन्न संगठनों ने इस सैन्य ऑपरेशन की सराहना की, वहीं भगवा परिषद ने भाजपा की ओर से घोषित ‘घर-घर सिन्दूर वितरण अभियान’ का कड़ा विरोध किया है।

भगवा परिषद के प्रवक्ता संतोष कुमार उपाध्याय ने प्रेस बयान जारी कर कहा:

“हमें सेना के सिन्दूर ऑपरेशन पर गर्व है। प्रधानमंत्री और भारतीय सेना ने उजड़े सिन्दूर की कीमत समझी और उसका बदला लिया। लेकिन भाजपा की ओर से सिन्दूर का राजनीतिक वितरण, सनातन संस्कृति का अपमान है।”

उपाध्याय ने आगे कहा कि सनातन धर्म में सिन्दूर केवल पति या महिला द्वारा ही दिया जा सकता है, और इसका सार्वजनिक वितरण धार्मिक मर्यादा के विपरीत है।


🧭 सिन्दूर: सिर्फ एक रंग नहीं, बल्कि श्रद्धा और संस्कार का प्रतीक

भारतीय संस्कृति में सिन्दूर एक विवाहिता स्त्री के सौभाग्य का प्रतीक होता है। इसका प्रयोग बेहद सम्मान और मर्यादा के साथ किया जाता है। यही कारण है कि धार्मिक संगठनों द्वारा भाजपा के इस अभियान को राजनीतिक प्रोपेगेंडा कह कर विरोध किया जा रहा है।


🗳️ भाजपा की सफाई और सियासी नज़रिए से अभियान

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता की ओर से जारी बयान में कहा गया कि यह अभियान महिलाओं के सम्मान में शुरू किया गया है और इसका उद्देश्य सिन्दूर ऑपरेशन की याद को जन-जन तक पहुंचाना है। पार्टी ने कहा कि यह विरोध राजनीति से प्रेरित है और इसका कोई धार्मिक अपमान करने का उद्देश्य नहीं है।


🔚 निष्कर्ष

जहाँ एक ओर ‘सिन्दूर ऑपरेशन’ ने भारत की सैन्य शक्ति और आतंकवाद पर सख्त रवैये को दुनिया के सामने रखा है, वहीं भाजपा की सिन्दूर वितरण योजना को लेकर धार्मिक संगठनों और नागरिक समाज में असंतोष देखने को मिल रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इस विरोध को कैसे संभालती है और क्या यह मुद्दा आगामी चुनावों में कोई भूमिका निभाएगा।



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